मेरा मन बहुत अशान्त
और अज्ञानमय हो रहा,
धूप की जलन में घबराहट
छाँव से मन डर रहा,
आसमान का भी रूखापन
धरती बंजर, सब मरूस्थल हो रहा,
मैं मनुष्य कब तक भागूँ
जैसे दामन जीवन का छुट रहा,
मेरा मन बहुत अशान्त
और अज्ञानमय हो रहा.....मनोज
और अज्ञानमय हो रहा,
धूप की जलन में घबराहट
छाँव से मन डर रहा,
आसमान का भी रूखापन
धरती बंजर, सब मरूस्थल हो रहा,
मैं मनुष्य कब तक भागूँ
असंवेदनशील, मैं मर रहा,
हर और दिख रही होड़ मुझेजैसे दामन जीवन का छुट रहा,
मेरा मन बहुत अशान्त
और अज्ञानमय हो रहा.....मनोज