शब्द भँवर पुलकित होती,
चेतन्य शान्ति भूयाल की,
पदचिन्हों की गुंज से,
नृत्यमय..राग रागनी,
देह अवशाद, तम सभी,
अन्त की कामनी,
दमक है गोण प्रतीक मेरा,
एक अलंकार बयाल की,
मृतभाषी..,मृताश्य,
शव की संगनी,
धैर्य निंद्रा ज्ञान की,
अज्ञानमय तम सादगी,
वश में नहीं वाक् गंगा,
राजस्व है राजेश्वरी,
ईश बिन्दू , काल चक्षु
आकार की अकारणी.... मनोज
चेतन्य शान्ति भूयाल की,
पदचिन्हों की गुंज से,
नृत्यमय..राग रागनी,
देह अवशाद, तम सभी,
अन्त की कामनी,
दमक है गोण प्रतीक मेरा,
एक अलंकार बयाल की,
मृतभाषी..,मृताश्य,
शव की संगनी,
धैर्य निंद्रा ज्ञान की,
अज्ञानमय तम सादगी,
वश में नहीं वाक् गंगा,
राजस्व है राजेश्वरी,
ईश बिन्दू , काल चक्षु
आकार की अकारणी.... मनोज
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