Wednesday, 3 August 2011

दूर तक फैला हुआ समंदर सा ये जहां,
नमकीन पानी की तरह रिश्तों का ये जहां..
न पूछे कोई..भटकते समंदर में,
लहरों की तरह चोट मरता ये जहां.....मनोज

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