Monday, 1 August 2011

हज़ारों ख्वायिशें  पल कर मर जाती है
दर्द हवाएं आँखों से टकरा जाती है..
फिर भी सांसे चलती है..
ये ज़िन्दगी यूँ ही लहराती है,
साहिलों में तनहा रेत छोड़ जाती है..
मुकम्मल कहीं से नहीं..
न गम..न हसीन ज़िन्दगी..
हर लम्हा यूँ ही कट जाती है..
फिर भी ये सांसें चलती है.....मनोज

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