इक बार कह दे तू कि,
रुहु इश्क़ जानता है..
हाँ फिर, मैं भी कह दूँ तुझे..
इश्क़ रब मानता है...
दुनिया की तलवार,
चाहे कितने भी हो पहरे..
राह इश्क़ की, सब रब जानता है..,
मुकम्मल इश्क़ नहीं होता...-
ये कहना छोड़ दो दरिंदो...
इश्क़ को खुदा भी अपना रब मानता है...
रुहु इश्क़ जानता है..
हाँ फिर, मैं भी कह दूँ तुझे..
इश्क़ रब मानता है...
दुनिया की तलवार,
चाहे कितने भी हो पहरे..
राह इश्क़ की, सब रब जानता है..,
मुकम्मल इश्क़ नहीं होता...-
ये कहना छोड़ दो दरिंदो...
इश्क़ को खुदा भी अपना रब मानता है...
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