Friday, 3 June 2011

मानो, चिन्तन का शैलाब सा उठ रहा हो,

मानो, चिन्तन का शैलाब सा उठ रहा हो,
हर ओर से आती सोच की शोर में,
मानवता का ठेहराव ढूंढ़ रहा हो,

मानो, तपती धूप में उम्र की झुर्रीयाँ जल रही हो,
सपनो के भीड़ से उलझती
इच्छाओं का जाल बुन रहा हो,

मानो, धर्म के बाढ़ में अज्ञान मिल रहा हो,
जीवन के मूल से, घबराती आत्मा,
परलोक की सेर कर रहा हो,

मानो, चिन्तन का शैलाब सा उठ रहा हो।।
मनोज

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