Monday, 6 June 2011

बिखरे हुए पन्नो में


आज बिखरे हुए पन्नो में-
इतिहास ढूंढ़ रहा हूँ ,
तेरे जुल्म की तारीख का-
पैगाम ढूंढ़ रहा हूँ....
तू  बदलती ज़िन्दगी की सूरत है-
मैं खाक में अपना नाम ढूंढ़ रहा हूँ...

तेरी आँखों में लाल है,
मेरी जमी का हिस्सा-
मैं बगावत की बू में सपनों को ढूंढ़ रहा हूँ,
आज बिखरे हुए पन्नो में-
इतिहास ढूंढ़ रहा हूँ .. मनोज



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