तुम्हें जाते हुए दूर तलक देखता हूँ मैं,
फिर पलटकर अपनी तन्हाई को..
ये आलम मेरी परछाई का सब्ब है,
और कुछ कहें तो राह मुश्किल है..
फिर भी ये दूरी बे-मुश्किल-
...इन्तिहाँ है,
और तुम्हारे मेरे बीच में फांसलों की ये-
बंदगी है,
शायद इसलिए !!
तुम्हें जाते हुए दूर तलक देखता हूँ मैं,
फिर पलटकर अपनी तन्हाई को..
फिर पलटकर अपनी तन्हाई को..
ये आलम मेरी परछाई का सब्ब है,
और कुछ कहें तो राह मुश्किल है..
फिर भी ये दूरी बे-मुश्किल-
...इन्तिहाँ है,
और तुम्हारे मेरे बीच में फांसलों की ये-
बंदगी है,
शायद इसलिए !!
तुम्हें जाते हुए दूर तलक देखता हूँ मैं,
फिर पलटकर अपनी तन्हाई को..
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