शायद तुम्हारे लिए ये ख़त आख़री हो,
पर मेरे लिए तुमसे बिछुडने की शुरूआत...
दिल के हर सफे में गहरी छाप है तुम्हारी
फिलहाल ये न मिट पाएंगे...
फिलहाल इसलिए कि इसके बाद कहीं ये दिल-
धड़कना ही न बन्द कर दे...,
फिर तो जिश्म की सारी बात...
कब्रे मिट्टी हो जाएगी,
खेर!
इस उम्र में तुम्हारी ये बेरूखी..
मुझे अपनो के बीच घुटन सी लगने लगती है,
आँखें बन्द करता हूँ तो-
खेतों की पगदंडियों में,
तुम्हारे पैरों के निशान दिखने लगते हैं,
किचड़ की सोंधी-सोंधी सी खुशबू में-
तुम्हारी महक आने लगती है,
पुरानी सारी बातें, उड़-उड़कर जा जाती है,
तन्हाई के इस आलम में मेरी सांसो को तनहा कर जाती है,
मैं जागते हुए भी सपनों में रहता हूँ,
याद बरसों की पर तुममें रहता हूँ,
अब! मेरा ये आख़री ख़त-
सिर्फ तुम्हारे लिए है,
जब तुम अमन-ए-नींद से जागो-
तो ख़त का जवाब जरूर देना,...........मनोज
पर मेरे लिए तुमसे बिछुडने की शुरूआत...
दिल के हर सफे में गहरी छाप है तुम्हारी
फिलहाल ये न मिट पाएंगे...
फिलहाल इसलिए कि इसके बाद कहीं ये दिल-
धड़कना ही न बन्द कर दे...,
फिर तो जिश्म की सारी बात...
कब्रे मिट्टी हो जाएगी,
खेर!
इस उम्र में तुम्हारी ये बेरूखी..
मुझे अपनो के बीच घुटन सी लगने लगती है,
आँखें बन्द करता हूँ तो-
खेतों की पगदंडियों में,
तुम्हारे पैरों के निशान दिखने लगते हैं,
किचड़ की सोंधी-सोंधी सी खुशबू में-
तुम्हारी महक आने लगती है,
पुरानी सारी बातें, उड़-उड़कर जा जाती है,
तन्हाई के इस आलम में मेरी सांसो को तनहा कर जाती है,
मैं जागते हुए भी सपनों में रहता हूँ,
याद बरसों की पर तुममें रहता हूँ,
अब! मेरा ये आख़री ख़त-
सिर्फ तुम्हारे लिए है,
जब तुम अमन-ए-नींद से जागो-
तो ख़त का जवाब जरूर देना,...........मनोज
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