भूल गए थे जिस सावन को,
उसकी याद आज फिर चली आई,
उन झूलों की तनी हुई आवाज़,
पत्तों की सरसराहट,
मानो, मेरे कानो की इर्द-गिर्द.. टहल रही हो,
और कह रही हो..
कि भूले सावन आज फिर से लौटा दो,
कोई ख्वाब फिर से नया,
उसकी याद आज फिर चली आई,
उन झूलों की तनी हुई आवाज़,
पत्तों की सरसराहट,
मानो, मेरे कानो की इर्द-गिर्द.. टहल रही हो,
और कह रही हो..
कि भूले सावन आज फिर से लौटा दो,
कोई ख्वाब फिर से नया,
यूँ दिखला दो.....मनोज
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