एक बार तो पूछ लिया होता,
कि मेरे बिन तुम रहोगे कैसे ?
मेरी आदत है तुमसे, कि पूछा नहीं तुमने,
कि मेरे बिन तुम संभलोगे कैसे ?
एक जीश्म ही सांझा नहीं था अपना,
सांझी थी हर बात अपनी,
एक बार भी नहीं पूछा तुमने,
कि तुम अकेले रहोगे कैसे ?
अब तो उम्र भर आँख बहेगी,
देखकर दुनिया ये कहेगी,
तुम भी अपना मन बनालो,
आगे बढ़कर जिन्दगी संभालो,
हाय रे ! इन्हें कैसे समझाऊँ,
जीश्म है मेरा,
रूह नहीं है,
तेरे संग वो समा गई है,
एक बार भी नहीं पूछा तुमने,
कि बिन रूह जी पाओगे कैसे ?.....मनोज
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