मन की गलियों से
Tuesday, 3 January 2012
रोज उगतें हैं सूरज
रोज उगतें हैं सूरज,
तंग गलियों की दीवारों से,
ज़िन्दगी कितनी भी खफ़ा रहे,
आसमा चमकते हैं सितारों से,
मुनासिब है तक़दीर का मायूस हो जाना,
पर उलझने सुलझती है उलझाने से..
-----मनोज----
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