Monday, 16 May 2011

मेरा मन

मेरा मन बहुत अशान्त
और अज्ञानमय हो रहा,
धूप की जलन में घबराहट
छाँव से मन डर रहा,
आसमान का भी रूखापन
धरती बंजर, सब मरूस्थल हो रहा,
मैं मनुष्य कब तक भागूँ

असंवेदनशील, मैं मर रहा,
हर और दिख रही होड़ मुझे
जैसे दामन जीवन का छुट रहा,
मेरा मन बहुत अशान्त
और अज्ञानमय हो रहा.....मनोज

Wednesday, 11 May 2011

शब्द भँवर

शब्द भँवर पुलकित होती,
चेतन्य शान्ति भूयाल की,
पदचिन्हों की गुंज से,
नृत्यमय..राग रागनी,

देह अवशाद, तम सभी,
अन्त की कामनी,
दमक है गोण प्रतीक मेरा,
एक अलंकार बयाल की,

मृतभाषी..,मृताश्य,
शव की संगनी,
धैर्य निंद्रा ज्ञान की,
अज्ञानमय तम सादगी,

वश में नहीं वाक् गंगा,
राजस्व है राजेश्वरी,
ईश बिन्दू , काल चक्षु
आकार की अकारणी.... मनोज