Monday 20 February 2012

किनारो से दूर चला.

फिर बहता हुआ.
किनारों से दूर चला,
बिन पतवार के.
खुले आसमा में यूँ चला,
सख्त जमी !
नमकीन पानी में..
तलाश करने चला,
फिर बहता हुआ.
किनारों से दूर चला....
जो भी मिला-
इन राहों में !
मिलते-मिलाते आगे बड़ा,
किनारो से दूर चला....

-मनोज-