Sunday 29 January 2012

आखरी सवाल

बस आखरी सवाल है तुमसे,
कि जीने से पहले मौत का फरमान क्यूँ है ?
दीये की बाती में अंत का आभाष क्यूँ है ?
तुम तो आसमा में रहते हो-
कहते हैं, 
फिर आसमा में सुनापन क्यूँ है ?

ज़र्रा-ज़र्रा तुम्हारा है,
ज़र्रे की खवाहिश तुम्हारी है,
फिर ज़र्रे में दर्द का एहसास क्यूँ है ?

जवाब है तो दे देना,
बिना किसी तर्क के,
क्योंकि, तुम्हारा तर्क,
मेरे शारीर से परे है,
और मौत के बाद-
क्या एहसास और क्या सवाल....

---मनोज--

 

Wednesday 18 January 2012

ऊँचें इमारत

मैं जब भी ऊँचे इमारतों को देखता हूँ,
तो मेरे सपनो का ख़र्च बड़ जाता है,
उम्मीदें हवा में उड़ती जरूर है-
पर पंख फैलाए उम्र गुज़र जाती है,
इस दिल में रोज़ नए अरमां उगते हैं,
और पुराने ढह जातें हैं ,
मैं जब भी ऊँचे इमारतों को देखता हूँ,..... 

---मनोज--

Tuesday 10 January 2012

इक बार देखता हूँ तो..


इक  बार देखता हूँ तो..
बार-बार मन करता है..
इस बार नहीं..
ये हर बार करता है..
फिर..
कुछ तुमको याद करता हूँ,
कुछ अपने आपको.,
रोज इसी तरह..
हर बार करता हूँ,

इक  बार देखता हूँ तो.,,,,,,,,,,

धड़कने रुक जाती है..
कहते हैं लोग..
ये एहसास करता हूँ..
सो बार संभलता हूँ..
सो बार फिसल जाता हूँ 
रोज इसी तरह..
हर बार करता हूँ,

इक  बार देखता हूँ तो.,,,,,,,,,,
----मनोज--

Saturday 7 January 2012

खुश रहना जरुरी है...


इस उम्मीद से की..
नमी पत्थर में भी जरुरी है..
हर रात अंधेरों में भी..
जुगनू की चमक जरुर है..
इसलिए..!
मुरझाये चेहरे में भी .. .
खुश रहना जरुरी है.. 

हर वक़्त का गुज़र जाना..
सफ़र के लिए जरुरी है..
इक दर्द से उभर कर..
दूसरे का आना भी जरुरी है..
इसलिए..!
मुरझाये चेहरे  में भी..
खुश रहना जरुरी है.. 
-----मनोज---

Tuesday 3 January 2012

रोज उगतें हैं सूरज

रोज उगतें हैं सूरज,
तंग गलियों की दीवारों से,
ज़िन्दगी कितनी भी खफ़ा रहे,
आसमा चमकते हैं सितारों से,
मुनासिब है तक़दीर का मायूस हो जाना,
पर  उलझने सुलझती है उलझाने से..
-----मनोज----