Monday 6 June 2011

बिखरे हुए पन्नो में


आज बिखरे हुए पन्नो में-
इतिहास ढूंढ़ रहा हूँ ,
तेरे जुल्म की तारीख का-
पैगाम ढूंढ़ रहा हूँ....
तू  बदलती ज़िन्दगी की सूरत है-
मैं खाक में अपना नाम ढूंढ़ रहा हूँ...

तेरी आँखों में लाल है,
मेरी जमी का हिस्सा-
मैं बगावत की बू में सपनों को ढूंढ़ रहा हूँ,
आज बिखरे हुए पन्नो में-
इतिहास ढूंढ़ रहा हूँ .. मनोज



Friday 3 June 2011

मानो, चिन्तन का शैलाब सा उठ रहा हो,

मानो, चिन्तन का शैलाब सा उठ रहा हो,
हर ओर से आती सोच की शोर में,
मानवता का ठेहराव ढूंढ़ रहा हो,

मानो, तपती धूप में उम्र की झुर्रीयाँ जल रही हो,
सपनो के भीड़ से उलझती
इच्छाओं का जाल बुन रहा हो,

मानो, धर्म के बाढ़ में अज्ञान मिल रहा हो,
जीवन के मूल से, घबराती आत्मा,
परलोक की सेर कर रहा हो,

मानो, चिन्तन का शैलाब सा उठ रहा हो।।
मनोज

Wednesday 1 June 2011

आज न तुम हो मेरे पास

आज न तुम हो मेरे पास,
न दिन के ये उजाले,
दर्द भी दूर बैठा
मुस्कुरा रहे मदिरालय

ये घडी-
पल की हर टिक-टिक में,
मौन आँखों से रिसते,
बेचेन भरी ख्यालें,

मकसद जिन्दगी का-
शायद तू नहीं,
फिर क्यूँ आ रही,
तेरी सदाएं,

आज न तुम हो मेरे पास,
न दिन के ये उजाले.... मनोज