Thursday 7 April 2011

इत्तफ़ाक

आज इत्तफ़ाक से,
बदना हो  गए हम
वो मौसम ही अलग था
जब इत्तफ़ाकन-
फिसल गए हम,

जिश्म के छालों ने- कमबख़त
आँखों में पानी भर दिए,
होश- बेढाल हुए हम,
रूहानी नशे मैं  डूब गए हम,
आज इत्तफ़ाक से,
बदना हो  गए हम.....
.मनोज

मैं थक कर हार गया

मैं थक कर हार गया,
तेरे आसमा को देखते-देखते,
मेरे  उम्र का हर लम्हा गुज़र गया 
तेरा  इंतजार करते-करते,
बस झूठ है तेरी हर आदत,
तू बसा नहीं है कहीं,
आस-पास मेरे.....मनोज