मन की गलियों से
Tuesday 5 April 2011
रेत के सपने
पत्ता-पत्ता सुखी डाली,
सुनी हो गयी,
जारी जवानी,
ऐसे मौसम में,
आ टकराते,
रेत के सपने,
आँखों में आकर-
पानी से बहते....
पूरी हो जाए,
हसरत सारी,
फिर भी दबी है,
आँखों में काली,
ऐसे मौसम में,
आ टकराते,
रेत के सपने,
आँखों में आकर-
पानी से बहते....
मनोज
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