मन की गलियों से
Saturday 5 November 2011
इक अरमान ही तो है,
अपना
जो दिलकी बात समझता,
सुनेपन की तन्हाई में..
यादों में रश, है घोलता..
फीके-फीके सपनों को..
रंगों में यूँ पिरोता.
डूबी डूबी शाम इश्क़ की ..
आँखों में यूँ खिलता
इक अरमान ही तो है,
अपना
जो दिलकी बात समझता,.....मनोज
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