रोज चलता हूँ उन रास्तों पर-
जहां मय्यत के आंसू गिरते हैं,
गम-ए-हालत इस महफ़िल में-
न जाने कितने लोग मिलते हैं..
पथरीले चहरों में नज़ारे खौफ़ दिखते हैं..
न जाने अँधेरी रातों में-
सितारे टूटे मिलते हैं...
रोज चलता हूँ उन रास्तों पर-
जहां मय्यत के आंसू गिरते हैं,......मनोज