Friday, 25 November 2011

पुरानी गली का चाँद


पुरानी गली का चाँद आज फिर रौशन  हुआ,
वो तबीयत से छूटे हैं  अभी-अभी, दिन में दीदार दो बार हुआ,
खुशियाँ आई मेरे चमन में भी, इंकार इकरार इस बार भी हुआ....
पुरानी गली का चाँद आज फिर रौशन हुआ,

उम्मीद से  ज्यादा हुश्न बरसा,
गली में फिसलन बार-बार हुआ,
वो महकते रहे इधर-उधर,
हर पल में दिल की धड़कन सौ बार हुआ,,
 पुरानी गली का चाँद आज फिर रौशन हुआ,...मनोज 

Wednesday, 23 November 2011

कुछ कागज़ के बिकते हुए फूल.

कुछ कागज़ के बिकते  हुए फूल..
बाज़ार की पगडंडियों में टंगे  हुए फूल..
अभी कुछ देर पहले,
अपनी चमक से मेरी आँखों को  भ्रमित करता फूल,
 ये कागज़ के हैं, जानता हूँ..
 इसमें, ऊपर से छिड़की हुए खुशबू है, जानता हूँ..
उसमे  जिंदे फूल का  एहसास नहीं है,  ये भी मैं मानता  हूँ..
फिर भी उसकी चमक..
मेरे दिल में गहरी है..
एक, न मिटने वाली छाप की तरह ,,
अब चाहूँ भी तो उसे छोड़ नहीं सकता..
क्योंकि  मेरे घर से बाज़ार की सीढियाँ दूर नहीं....मनोज 

Monday, 21 November 2011

"सच की तलाश जारी है "

 सच को ढूंढ़ता हूँ मैं..
अपने अन्दर और बाहर,
कीचड़ में  लतपत खुले मैदान में,
तुम्हारा सच या मेरा सच..
या उड़कर मेरे कानों तक आते, वो अनगिनत सच..
ढूंढ़ रहा हूँ मैं..
तुम्हारे  मुह से निकले हर शब्द के सच को  ..

तलाश है मुझे-
इन ऊँचे-ऊँचे पंडालों के बीच में बैठे  सच की..,
अगल बगल झांक लो..
कहीं तुमसे तुम्हारी बात न छुट जाए !
इस जन शैलाब  में तुम्हारा मैं, अपने सच पर   हावी  न हो जाए..

ये  सब मुमकिन है ..
मामूली सी बात है..ये,
हजारों मस्तिष्क  के हर कोशिकाओं में..
रोज करोड़ों सच तैरती हैं..
वो तैयार है  अपने सच से,  तुम्हरे सच को काटने के  लिए..
 तलाश है उन्हें, कीचड़ की भीड़ में
 भटकते एक सच की,
जिसे पकड़,-
वो तुम्हारे आँत की लम्बाई नाप सके..
तुम्हारे रुतबे के सामने, ये मुश्किल जरुर है..
पर नामुमकिन नहीं है..       "सच की तलाश जारी  है ".. मनोज

यूँ ही ढूंढ रहा था, मैं अपने कल को

यूँ ही ढूंढ रहा था, मैं अपने कल को,
तंग बाज़ार की भीड़ में,
रिकशे के घुमते पहियों की तरह,
यादों की नज़रों से ढूंढ रहा था, मैं अपने कल को....

 कुछ उलझी हुई सी थी,
इमारतों की खेती के दरमियां 
अपनों की कमी और. एक लम्बी कतार-
आँख खोल कर सोने वालों की..
इनके बीच ढूंढ रहा था, मैं अपने कल को,

उन रास्तों को समझने की कोशिश कर रहा था,
जहाँ आख़री बार-
मेरी साईकल के पहियों की छाप छुटी थी,

पर कुछ झंझट सी है इन गलियों के बीच,
बेतहासा सजावट के बीच..
इनसे निकलती तेज़ रोशनी-
भटका रही थी मुझे,
फिर भी इस हाल में-
ढूंढ रहा था मैं अपने कल को...

ढूंढ रहा था,
उन लम्हों को,
भीगते बालों की उस महक को,
खुबसूरत सी थी, इन गलियों में-
खिलखिलाती यादें...
उसकी सोच ढूंढ रही थी ये  आँखें ,

खैर  !
जमीन का ये हिस्सा,
अपनी आकार के हिसाब से आवाज़ दे रहा है..
कि ढूंढ लो अपने कल को...
मेरे इस आज में...........मनोज 

एक बार तो पूछ लिया होता

एक बार तो पूछ लिया होता,
कि मेरे बिन तुम रहोगे कैसे ?
मेरी आदत है तुमसे, कि पूछा नहीं तुमने,
कि मेरे बिन तुम संभलोगे कैसे ?

एक जीश्म ही सांझा नहीं था अपना,
सांझी थी हर बात अपनी,
एक बार भी नहीं पूछा तुमने,
कि तुम अकेले रहोगे कैसे ?

अब तो उम्र भर आँख बहेगी,
देखकर दुनिया ये कहेगी,
तुम भी अपना मन बनालो,
आगे बढ़कर जिन्दगी संभालो,

हाय रे ! इन्हें कैसे समझाऊँ,
जीश्म है मेरा, 
रूह नहीं है,
तेरे संग वो समा गई है,
एक बार भी नहीं पूछा तुमने,
कि  बिन रूह जी पाओगे कैसे ?.....मनोज

Saturday, 19 November 2011

खुदा करे लफ़्ज़ों से निकल कर कभी तो जन्नत बाहर आ जाये,
इक बार हम भी तो देखें कि हर सफे में लिक्खी कहानी कहाँ तक सही है..,

इस फकीर को लफ़्ज़ों की लकीर में यकीं नहीं,
है दम तो एक बार आसमा से अपना चेहरा तो दिखला दो..




Friday, 18 November 2011

इश्क आईना नहीं.
जो टूट कर बिखर जाये..,
हाँ, सिलवटे जरुर आती है ज़िन्दगी में,
साथ यूँ नहीं छोड़ा करते,
उम्रभर जो तुम्हारा था दिल से..
मु की बातों से दिल  तोडा नहीं करते.
अश्क है तेरी ख़ुशी का हर सबब..
अरमानो के रूठ जाने से यूँ बहा नहीं करते..
हाँ, सिलवटे जरुर आती है ज़िन्दगी में,
साथ यूँ नहीं छोड़ा करते...


इक बार कह दे तू कि,
रुहु इश्क़ जानता है..
हाँ फिर, मैं भी कह दूँ तुझे..
इश्क़ रब मानता है...

दुनिया की तलवार, 
चाहे कितने भी हो पहरे..
राह इश्क़ की, सब रब जानता है..,

मुकम्मल इश्क़ नहीं होता...-
ये कहना छोड़ दो दरिंदो...
इश्क़ को खुदा भी अपना रब मानता है...

Saturday, 5 November 2011

इक अरमान ही तो है, अपना 
जो दिलकी बात समझता,
सुनेपन की तन्हाई में..
यादों में रश, है घोलता..
फीके-फीके सपनों को..
रंगों में यूँ  पिरोता.
डूबी डूबी शाम इश्क़ की ..
आँखों में यूँ खिलता 
इक अरमान ही तो है, अपना 
जो दिलकी बात समझता,.....मनोज