Wednesday, 21 December 2011

माँ कहती है

माँ कहती है-
दिल की बात सच्ची होती है,
लफ़्ज़ों में जरुर उलझती है दुनिया,
रुहू की आह सच्ची होती है,

भटकती है  सच्चाई धुँध की तरह..
पर राह सच्ची होती है..
माँ कहती है..


----मनोज---





उड़कर देख लो मन से

लफ़्ज़ों की नज़र से निकल कर,
दुनिया को देख लो मन से..
आवाज़ दो गहरे आसमा में..
फिर उड़कर देख लो मन से,


इधर दुनिया बड़ी ही मायूस है,
आँखों  में है कई जलजले..
ज़रा पानी छिड़क लो चहरे पर..
फिर सपने देख लो मन से,

लफ़्ज़ों की नज़र से निकल कर,
दुनिया को देख लो मन से.. 
----मनोज---

Tuesday, 20 December 2011

फ़ितरत


टूट कर बिखर जाना-
तुम्हारी फितरत में है शायद,
आहों को बटोर कर-
फिर इक बार जिलाना,
मेरी फितरत में है शायद..
शायद इन्हीं मुमकिनो  का फ़लसफ़ा,
हमारे साथ रहने कि फ़ितरत है....

तुम टूट कर बार-बार रूठ जाती हो,
मैं रूठने की कोशिश में ढह जाता हूँ,
इन उलझनों की फिसलन में-
बार-बार फिसलते हैं हम,
हम अलग होकर भी साथ रहते हैं हम,
हर नाकामी पल में भी साथ देते है हम,
शायद इन्हीं मुमकिनो का फ़लसफ़ा,
हमारे साथ रहने कि फ़ितरत है.... मनोज 

Sunday, 4 December 2011

अब चुप सी रहती है.......

अब चुप सी रहती है उनकी आँखें,
आवाज़ नहीं अब सुनी है उनकी सांसे,
बहुत ही विरान है मिट्टी उनकी-
अब उखड़ी-उखड़ी सी है मेरी रातें,
दिल तो बहल जाता है उनको देखकर,
अब उनसे नहीं होती कोई बातें...मनोज