मैंने सुना है तुम्हारे दर्द की हर आहट को..
महसूस किया है प्यास की हर एक घूंट को..
राहा चलते रोज देखता हूँ-
तुम्हारी मैली चादर को !
बिखरे हुए तमाम उन सिक्कों को
खटकती है मुझे भी,
पर!
खुली आँखों से बंद कर लेता हूँ,
अपने जज्बातों को......मनोज
महसूस किया है प्यास की हर एक घूंट को..
राहा चलते रोज देखता हूँ-
तुम्हारी मैली चादर को !
बिखरे हुए तमाम उन सिक्कों को
धूल में सने भूख के हर टुकड़ों को..
चुभती है मुझे भी-खटकती है मुझे भी,
पर!
खुली आँखों से बंद कर लेता हूँ,
अपने जज्बातों को......मनोज
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