बस आखरी सवाल है तुमसे,
कि जीने से पहले मौत का फरमान क्यूँ है ?
दीये की बाती में अंत का आभाष क्यूँ है ?
तुम तो आसमा में रहते हो-
कहते हैं,
फिर आसमा में सुनापन क्यूँ है ?
ज़र्रा-ज़र्रा तुम्हारा है,
ज़र्रे की खवाहिश तुम्हारी है,
फिर ज़र्रे में दर्द का एहसास क्यूँ है ?
जवाब है तो दे देना,
बिना किसी तर्क के,
क्योंकि, तुम्हारा तर्क,
मेरे शारीर से परे है,
और मौत के बाद-
क्या एहसास और क्या सवाल....
---मनोज--
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