Wednesday 1 February 2012

ऐसा कौन सा सन्देश दे ?

रात के दस बजे,
तुम्हारा सन्देश,
कि उनका जाना तय हुआ..
छोटी सी तुम्हारी बात,
और मायूसी में डूबे मेरे हालात,

इक रोज पहले ही मिला था,
किसी अजनबी की तरह उनसे,
न मैं जानता था उन्हें,
और न वो पहचानते थे मुझे,
बस दूर का रिश्ता था,
मन का, मनुष्य का,
दूर इसलिए की-
ऐसे रिश्ते पुकारे नहीं जाते,
न ही टूटे हुए माने जाते,
खेर !
उनकी ज़िन्दगी का तो अंत हुआ,
उलझनों का,
इच्छाओं का,
और बाकी इस शरीर का,
पर, मेरी एक अलग ही उलझन थी,
कि जिन्दा आदमी-
मरने वाले के लिए क्या कहें ?
ऐसा कौन सा सन्देश दे,
जिसे सुनकर मेरा दर्द उनतक पहुंचे..
--मनोज
 

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